Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
यह सब सुनने के बाद विजय हॉल में पीछे की तरफ़ फ़र्श पर बैठ जाता है. विजय के दोनों हाथ चौखठों से लगे हुए हैं. चौखठ के पीछे रोशनी है और इस रोशनी में विजय गा रहा है, ‘ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया, ये इंसा के दुश्मन, समाजों की दुनिया, ये दौलत के अंधे रिवाज़ों की दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर इक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी, निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी, ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, यहां इक खिलौना है इंसा की हस्ती, ये बस्ती है मुर्दापरस्तों की बस्ती, यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, जवानी भटकती है बदकार बन कर, यहां जिस्म सजते हैं बाज़ार बन कर, यहां प्यार की क़द्र ही कुछ नहीं है, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, जला दो इसे, फूंक डालो ये दुनिया, मेरे सामने से हटा दो ये दुनिया, तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है….
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 10-08-2020 at 05:09 PM.
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